हम सामाजिक परिवर्तन की बात करते हैं पर उस परिवर्तन की बात पर कई बार लोग कहते हैं सिर्फ मेरे अकेले के कुछ करने से क्या हो जायेगा, अगर मैने ऐसा कर भी दिया तो क्या इससे कोई बदलाव सच मे आ ही जायेगा और इस तरह के कई बहाने सामने आ जायेंगे |
मै ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा पर मेरे अंग्रेजी के शिक्षक जो कहते थे सिर्फ उसे ही आगे रखूंगा |
अंग्रेजी मे I के साथ am सहायक क्रिया का उपयोग होता है जो की सिर्फ I के लिए ही समर्पित है जबकि अन्य सभी सहायक क्रियायें कई कर्ताओं के साथ इस्तेमाल की जा सकती हैं, सिर्फ I ही ऐसा शब्द होता है जो हमेशा बड़े अक्षरों मे लिखा जाता है क्यूँ की ये एक शब्द बहुत खास होता है, उनका ये भी कहना था की I कभी भी अकेला नहीं होता अंग्रेजी भाषा मे I को हमेशा बहुवचन माना गया है तो जब मै बहुवचन है तो फिर मेरे चाहने से परिवर्तन क्यों नहीं आएगा |
हमारी समस्या ये होती है की हम हमेशा चाहते हैं की परिवर्तन की बयार चले तो जरूर लेकिन शुरुवात पडोसी के घरों से हो, घर जले तो पडोसी का जले और फायदा मिले तो मुझे मिले |
थोड़े दिन पहले तुलसी भाई ने उनकी फेसबुक पर लिखा था सोच को गुलाम मत बनने दो सोच को आजाद रखो जागो तो एक साहब का कहना था की क्या सिर्फ सोच बदलने से और सिर्फ मेरे ऐसा सोचने भर से परिवर्तन आ जायेगा, मै कहता हूँ हाँ अगर हर मै इस परिवर्तन की बात को सोच लेगा और हर एक मै मिल कर एक हम का निर्माण करेगा और सोच बदलने से स्थिति भी बदलेगी |
अंत मे सिर्फ इतना ही कहूँगा हर बदलाव और आन्दोलन की शुरुँवात मै से ही होना चाहिए तुम से नहीं, अगर इस बदलाव की चाहत मे पूरी श्रद्धा होगी तो इस मै को हम बनते देर नहीं लगेगी उसका सब से ताजा उदाहरण है अन्ना हजारे जी का आन्दोलन जिसमे देश का एक बड़ा तबका उनके साथ हो गया था क्योंकि उन्हों शुद्ध अंतकरण से बदलाव की बात कही थी
मै ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा पर मेरे अंग्रेजी के शिक्षक जो कहते थे सिर्फ उसे ही आगे रखूंगा |
अंग्रेजी मे I के साथ am सहायक क्रिया का उपयोग होता है जो की सिर्फ I के लिए ही समर्पित है जबकि अन्य सभी सहायक क्रियायें कई कर्ताओं के साथ इस्तेमाल की जा सकती हैं, सिर्फ I ही ऐसा शब्द होता है जो हमेशा बड़े अक्षरों मे लिखा जाता है क्यूँ की ये एक शब्द बहुत खास होता है, उनका ये भी कहना था की I कभी भी अकेला नहीं होता अंग्रेजी भाषा मे I को हमेशा बहुवचन माना गया है तो जब मै बहुवचन है तो फिर मेरे चाहने से परिवर्तन क्यों नहीं आएगा |
हमारी समस्या ये होती है की हम हमेशा चाहते हैं की परिवर्तन की बयार चले तो जरूर लेकिन शुरुवात पडोसी के घरों से हो, घर जले तो पडोसी का जले और फायदा मिले तो मुझे मिले |
थोड़े दिन पहले तुलसी भाई ने उनकी फेसबुक पर लिखा था सोच को गुलाम मत बनने दो सोच को आजाद रखो जागो तो एक साहब का कहना था की क्या सिर्फ सोच बदलने से और सिर्फ मेरे ऐसा सोचने भर से परिवर्तन आ जायेगा, मै कहता हूँ हाँ अगर हर मै इस परिवर्तन की बात को सोच लेगा और हर एक मै मिल कर एक हम का निर्माण करेगा और सोच बदलने से स्थिति भी बदलेगी |
अंत मे सिर्फ इतना ही कहूँगा हर बदलाव और आन्दोलन की शुरुँवात मै से ही होना चाहिए तुम से नहीं, अगर इस बदलाव की चाहत मे पूरी श्रद्धा होगी तो इस मै को हम बनते देर नहीं लगेगी उसका सब से ताजा उदाहरण है अन्ना हजारे जी का आन्दोलन जिसमे देश का एक बड़ा तबका उनके साथ हो गया था क्योंकि उन्हों शुद्ध अंतकरण से बदलाव की बात कही थी
आपसे पूरी तरह सहमत.
ReplyDeleteSach kaha...pariwartan kee shuruat khudse honee chahiye...kisee aurse nahee.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteलोहड़ी पर्व की बधाई और शुभकामनाएँ!
bahut hi umda post ...sahi kaha SHURUVAT KHUDSE karo ..shukriya KUNDAN mere bhai
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