जाने क्या कड़वाहट है सियासत लफ्ज में
एक दोस्त को दोस्त से दुश्मन बना देती है ये
जो साथ बैठ कर चूसते थे गन्ने खेतों में
उनमे ही आपस में कड़वे बोल बुलवा देती है ये
कभी जिन्होंने एक दुसरे को अलग न समझा
उन्ही को हिंदू और मुसलमान बना देती है ये
मजहब सिखाता है अमन चैन से रहना
मजहब के नाम पर नफरत सिखा देती है ये
ईद और दीवाली पर जिन्हें कहते हें भाई हम
उन्ही भाइयों से वोटों के लिए लडवा देती है ये
जाने क्या कड़वाहट है सियासत लफ्ज में
एक दोस्त को दोस्त से दुश्मन बना देती है ये
यही कविता मैंने मेरे कविताओं वाले ब्लॉग पर भी पोस्ट करी थी ... यहाँ भी वही पोस्ट कर रहा हूँ
एक दोस्त को दोस्त से दुश्मन बना देती है ये
जो साथ बैठ कर चूसते थे गन्ने खेतों में
उनमे ही आपस में कड़वे बोल बुलवा देती है ये
कभी जिन्होंने एक दुसरे को अलग न समझा
उन्ही को हिंदू और मुसलमान बना देती है ये
मजहब सिखाता है अमन चैन से रहना
मजहब के नाम पर नफरत सिखा देती है ये
ईद और दीवाली पर जिन्हें कहते हें भाई हम
उन्ही भाइयों से वोटों के लिए लडवा देती है ये
जाने क्या कड़वाहट है सियासत लफ्ज में
एक दोस्त को दोस्त से दुश्मन बना देती है ये
यही कविता मैंने मेरे कविताओं वाले ब्लॉग पर भी पोस्ट करी थी ... यहाँ भी वही पोस्ट कर रहा हूँ
Sach kaha!
ReplyDeleteBahut hi behtareen rachna hai sir.. :)
ReplyDeleteKabhi samay mile to mere blog par bhi aaiyega..
palchhin-aditya.blogspot.com
बस नाम ही काफी है.
ReplyDeleteबिलकुल सच वर्णन किया है आपने । बधाई ।
ReplyDeleteमेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
behatarin ...alfaz nahi hai mai kis kadr is kavita ki tarif karoo ...the best
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