" सुनाये गम की किसे कहानी ,
हमें तो अपने सता रहे है
हमेशा सुबह हो शाम दिलपर
सितम के खंजर चला रहे है ,
सुनाये गम की किसे कहानी ...| " ......
" ये अल्फाज़ मेरे नहीं है मगर देश के लिए कुर्बान होने वाले एक सच्चे देश भक्त के है ..और आज भी
वही किस्सा हर रोज दोहराया जा रहा है भारत देश में ..क्यों की हम कुछ भूल रहे है और आज देश के नाम पर शहीद होनेवालो के नाम को भी बदनाम कर रहे है.. देश के लिए ..देश की आज़ादी के लिए शहीद होने वाले उन शहीदोँ की आत्मा आज शायद रो रही होगी ..सोचते होंगे वो भी कि क्या ये सब देखने के लिए ही हमने देश की खातिर और देशवासियों के खातिर अपनी जान लगाई थी ..वो फांसी का फंदा जो हमने हँसते हँसते अपने गले में फूलों की माला समझकर डाला था..क्या यही देखने के लिए डाला था ? हमने तो कभी किसी क्रांतिकारी को कभी उसके मजहब के बारे में नहीं पुछा था और एक साथ मिलकर लडे थे देश को आज़ाद करने के लिए ..क्यों की देश पर मुसीबत थी "अंग्रेज "नाम की ....आज भी तो देश पर मुसीबत आई है और लोग लड़ भी रहे है ..मगर फर्क यही है की हम मजहब को भूल कर एक साथ मिलकर लडे थे और आज भारतवासी मजहब को याद रखकर अलग अलग हो कर लड़ रहे है ..और यही वजह है की उनकी आवाज़ बुलंद नहीं हो पा रही है | "
* आपसी टकराव बंद करो ..मिलकर लड़ो |
" जब आज देश को जरूरत है एकता की उसी वक़्त मै देख रहा हूँ की हर सोशल साईट पर आज भी लोग हिन्दू , मुसलमान के नाम से लड़ रहे है , लड़ो भाई ..खूब लड़ो मगर एक बात बताओ की आपकी आपसी लड़ाई
में फायदा किसका हो रहा है ?..तो उनका ही जो आपको आपस में लड़वाकर कुर्सी पर बैठे आप पर राज कर रहे है और आपको क्या मिलता है .." भय , भूख , भ्रस्टाचार " शायद इसके आलावा आपको कुछ हासिल भी नहीं हुआ है और अगर इसी तरह लड़ते रहोगे तो शायद हासिल भी नहीं होगा | "* इन्होने तो नहीं पूछा था की आपका मजहब कौनसा है ?
"अब्दुल कलाम" ने किसी से कभी पूछा की तू हिन्दू है या मुसलमान ? फिर भी हम एक दुसरे को पूछते है की तू हिन्दू है या मुसलमान ..पूछते रहो ..ऐसे ही एक दुसरे को पूछते रहो मगर याद रखना ऐसे ही पूछने में १९४७ में लाशों से भरी ट्रेन आई थी ..वो भी सियासी दावपेच था और आज जो देश में हो रहा है वो भी एक सियासी दावपेच ही है ... आज भी हमारे ही चुने हुवे नेता सियासी दावपेच खेलकर खुद अपराधी होते हुए भी निर्दोष लोगों पर लाठिया बरसा रहे है वजह तो सिर्फ इतनी है की हम अलग अलग हो कर लड़ रहे है ..| "
* भ्रस्टाचार भी कभी पूछता नहीं की तू ...... |
" देश में फैला भ्रस्टाचार जितना हिन्दू को परेशान करेगा उतना ही मुसलमान को भी परेशान तो करेगा ही क्यों की भूख और भ्रस्टाचार भी कहाँ पूछते है की तू हिन्दू है या मुसलमान ?..जितना भ्रस्टाचार बढेगा और जितना "काला धन" स्विस बैंक में जायेगा उतने ही ज्यादा "टैक्स " भी तो हमे ही भरने पड़ेंगे और मेरे ख्याल से " टेक्स " भरते वक़्त भी ये नहीं पुछा जाता है की तू हिन्दू है या मुसलमान ...फिर आप एक दुसरे को क्यों पुछ रहे है ? "
* स्विस बैंक से जब "काला धन" वापस आएगा तो वो किसका होगा ?
हिन्दू समाज का होगा और न ही किसी मुस्लिम समाज का होगा ,वो होगा तो इस देश का होगा ...हम सब का होगा | "
* किसकी है हिम्मत के हमे " ना " कहे |
" १३० करोड़ की आबादी अगर एक साथ एक ही नारा लगाये की काला धन वापस लाओ , भ्रष्टाचार मिटाओ ,..तो ये सरकार तो क्या किसी के बाप की इतनी हिम्मत नहीं है की वो " ना " कहे ..एक दिन मेंनहीं मगर एक ही सेकण्ड में सरकार जनता के कदमों में होगी ..मगर हमारे में ही कमी है की हम कभी मिलकर नारा नहीं लगा सकते है | "
* मरने मारने वाले भी हम ही होगे |
हो रहे थे और उन्हें परवाह थी तो सिर्फ अपने देश की और इन पर गोलिया चलानेवालों को परवाह थी तो सिर्फ अपनी और इस में भी फायदा किसका हुआ ? तो सिर्फ अंग्रेजों का ही ..हमने तो अपने २०००० भाई बहन को खो दिए थे..और १६०० राऊंड गोलिया चलानेवाले सैनिक में भी इसी देश के वासी तो थे ..जो सिर्फ अपने लिए जी रहे थे अर्थात मरने वाले भी हम मारने वाले भी हम ..और भविष्य में भी अगर यूँही चलता रहा तो "मारने वाले भी हम ही होंगे और मारने वाले भी हम ही होंगे" ..क्योंकि हमारे में ही कमी है " एकता " की और यही कमी की वजह से फायदा हो रहा है उन भ्रष्टाचारी नेताओं का और बड़े ही आराम से इस देश की जनता के खून पसीने की कमाई को चूसते रहते है फिर चाहे वो सरकार किसी भी पार्टी का क्यों न हो ..हमे मिलकर उसके खिलाफ
* धन्यवाद् " अनुराग "
" इस पोस्ट में दिया गया ये विडियो दरअसल " अनुराग जी " का है..और इसी विडियो ने मेरी आँख को अश्कों से भर दिया था ..ये विडियो देखने के बाद २४ घंटे तक मेरे दिमाग में सिर्फ और
सिर्फ एक ही बात गूंजती थी ..
" सुनाये किसे गम की कहानी हमें तो अपने सता रहे है , "
* इसे जरूर पढियेगा और फिर देखिएगा विडियो |"
" अमर शहीद अश्फाकउल्ला खाँ को मृत्यु दण्ड का कोई भय ना था वे तो अक्सर गनगुनाया करते थे "हे मेरी मातृभूमि सेवा तेरी करूँगा फाँसी मिले मुझे या हो जन्मकैद मेरी बेडी बजा बजाकर तेरा भजन करूँगा" उन्हें थी तो सिर्फ एक शिकायत उनकी विरूद्ध गवाही देकर देशद्रोह का कार्य करने वाले स्वयं उनके साथी भारतवासी ही थे इस पीडा को उन्होंने इस कविता के माध्यम से दर्शाया भी है | "आज देश में जो हो रहा है उसके चित्रों के साथ बना ये विडियो आज भी मुझे रुला रहा है ..
" इसी श्रंखला की अगली पोस्ट जरूर पढियेगा कुछ ऐसी बाते बताऊंगा की आप भी चौंक जाओगे की किस तरह ये नेता सियासती दाव हम पर खेलते है .. कुछ सबूतों के साथ आऊंगा | "