" श्री शुक्ला जी " लौह स्तम्भ" के एडिटर है, जो ग्रेटर नॉएडा,सीतापुर से है जो सिनिअर जर्नालिस्ट है ... उनकी कलम को सलाम ये मै ही नहीं बल्कि आप भी उनकी ये अद्भुत ग़ज़ल को पढ़कर कहेंगे ...तो ये रही उनकी रचना ...पढ़िए और सोचिये ...जानिए सच्चाई को .................
डरा कर इनसे
सड़क पे इनको उतरते हुए डर लगता है,
भीड़ के बीच गुजरते हुए डर लगता है,
ये हैं संगीनों के साये में भी दहशत से भरे,
घर से बाहर भी निकलते हुए डर लगता है ,
और कहते हैं खुद को मर्द , डरा कर इनसे /
हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /
आम इनसान को जाहिल ही समझते हैं ये ,
सारी दुनिया की अकल खुद में समझते हैं ये ,
मुखालफ़त क्या , मशविरा भी गवारा न इन्हें ,
अलहदा सबसे नस्ल खुद की समझते हैं ये ,
इनको दुनिया का नहीं दर्द , डरा कर इनसे /
हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /
कुर्सियों के लिए , कुत्तों की तरह लड़ते हैं ,
कुर्सियाँ पा के मगर , शेर सा अकड़ते हैं ,
चलाते तब हैं ये जंगल का कायदा - क़ानून ,
बाप का माल समझ , खुद का ही घर भरते हैं ,
हमाम में हैं ये बेपर्द , डरा कर इनसे /
हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /
- एस. एन. शुक्ल
" श्री एस एन शुक्ला" जी का ब्लॉग पता है " मेरी कविताये "
इस प्रभावी व्यक्तित्व को सलाम
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