" फास्ट ट्रैक कोर्ट मे 1200
पन्नों की चार्जशीट, 86 गवाहियां और 243 दिनों की
सुनवाई के बाद आखिरकार वह फैसला आ गया जिसका इंतजार पूरे देश को था। ज्योति सिंह
पांडे के हत्यारे चारों दरिंदों मुकेश शर्मा, विनय शर्मा,
अक्षय
ठाकुर और पवन गुप्ता को दिल्ली की साकेत अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। अदालत ने
मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' श्रेणी में रखते हुए यह फैसला सुनाया। "
" लेकिन जबकि कोर्ट ने इस घटना को रेयरेस्ट ऑफ
रेयर केस कहा तो ऐसे मे स्कूल सर्टिफिकेट (ध्यान रहे 10 वीं का भी
नहीं) के आधार पर सबसे जघन्य अपराध करने वाले जिसके आधार पर ये केस रेयरेस्ट ऑफ
रेयर बना उस अपराधी मोहम्मद अफ़रोज को नाबालिक मान 3 साल के लिए दूध,
फल
खाने और खेलने के लिए बाल सुधारगृह भेज दिया। जहां वो अफ़रोज मस्त तरीके से अपनी
सेहत बनाएगा और अपनी महज 3 साल की सजा की अवधि पूरी कर फिर से
ऐसा कोई अपराध करे। "
" बाकी 4 अपराधियों पर कोर्ट के फैसले का हम
स्वागत करते हैं परंतु इस केस ने एवं इस पर दिये गए फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए
हैं:-
1. ये केस एक फास्ट ट्रैक कोर्ट मे चल रहा था फिर
भी फैसला आने मे 243 दिन लग गए, ऐसे मे भारत के
न्यायालयों मे चल रहे सामान्य केसेस मे क्या हो रहा होगा ?
2. अगर ये केस रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस था तो इसमे
सामान्य कानून के आधार पर चल कर इस केस को रेयरेस्ट ऑफ रेयर बनानेवाले को ही सबसे
कम सजा क्यूँ ?
3. इसी कोर्ट ने 10वीं के
सर्टिफिकेट के आधार पर पूर्व आर्मी जनरल वीके सिंह के उम्र को नहीं माना था,
वहीं
यही कोर्ट महज 7 वीं के स्कूल सर्टिफिकेट को सही मान बैठा और
सजा कम दिया। ऐसा दोहरापन क्यूँ....ऐसे मे इस फैसले पर मैं क्यूँ ना कहूँ की भारत
मे न्याय मे भी क्षद्म-धर्मनिरपेक्षता घर कर गई है एवं सामान्य श्रेणी के लोगों के
फैसला अलग एवं तथाकथित मुस्लिम अल्पसंख्यकों हेतु फैसला अलग।
" जो भी हो ये फैसला कहीं से भी स्वागत योग्य
फैसला नहीं है बल्कि भारत मे अपराध का एक ऐसा बीजारोपण है जो आगे आने वाले दिनों
मे भारत दहन का कारण बन सकता है। अपराधियों की एक नई फौज तैयार होगी जो हत्या,
किडनैपिंग,
बलात्कार
जैसे जघन्य कांड करेंगे क्यूंकी वो तो कुछ ही दिनों मे छुट जाएंगे। देश के कानून
को अपराधी को अपराधी के नजर से देखना चाहिए ना की अपराधी का निर्धारण धर्म के आधार
पर होना चाहिए। "
अब सवाल ये उठता है की
आखिर एक अपराधी महमद अफ़रोज कहाँ है ?
यहाँ सुनिए इन दरिंदों के वकील की भाषा को ...ये भाषा बोलनेवाले वकील को आप क्या कहेंगे ?
ये वीडियो देखने के बाद आप की प्रतिकृया क्या है वो नीचे दिये बक्षे मे जरूर लिखिए
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मुझे बतायें वकील साहब ने क्या ग़लत कहा ?
ReplyDeleteग़लत को ग़लत कहना सही है। पर
सही को सही नहीं कहना तो सरासर ग़लत है।
एक सामूहिक समान अपराध में भी एक समान सज़ा होनी ही चाहिए।
मौत की सज़ा में दोष के प्रतिशत के आधार पर विविधता ला सकते हैं।
एक को सार्वजनिक फाँसी तो दूसरे को एकांतिक।
तीसरे को विषाक्त भोजन को बाध्य करना तो चौथे को चुपचाप देकर शांत करना।
पाँचवे को झटका या हलाल पद्धति से।
वैसे भी ये दंड व्यवस्था न्यायमूर्तियों के चिंतन का विषय है मेरे नहीं।
प्रतुल जी इसे देखिये ओर पढ़िये ये कहा था वकील ने
Deleteए. आई.आर १९६१ कल.४९५ में न्यायालय में वकील ने मजिस्ट्रेट को ''द्रोही ,डाह करने वाला ''कहा तो उसे अवमानना का दोषी माना गया .
यहाँ वकील एपी सिंह ने फैसला सुनते ही भरी अदालत में जोर जोर से चिल्लाते हुए कहा -''जज साहब !आपने सत्यमेव जयते का पालन नहीं किया बल्कि असत्यमेव जयते किया है .आपने मेरे मुवक्किलों को फाँसी की सजा देकर उनके साथ अन्याय किया है .आपने सियासी दबाव में सजा दी है इंसाफ नहीं दिया है .''
पूरी खबर यहाँ पढ़िये
http://shalinikaushikadvocate.blogspot.in/2013/09/blog-post_14.html
जो विडिओ में दिखाया है उसमें वकील साहब ने एक भी शब्द अनुचित नहीं कहा ....सत्य वही है जो उन्होंने कहा है...महिलाओं , लड़कियों की ही गलती अधिक है ....
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