कृपया ये पोस्ट हिन्दू ...मुसलमान बनकर ना पढ़े
सिर्फ इंसान बनकर ही पढ़े
३ तारीख ये घटना विश्व के लिए चेतावनी ही समजो
मेरी दरगाह क्यू तोड़ी ?
“ दमास्कस
“ मे हजरत अली के प्यारे शहीद हजर बिन अदिना की मजार शरीफ को
निशाना बनाया “तक्फ़ीरी मुजाहिदीन “ ने , दमास्कस के अदरा विस्तार मे घटी ये घटना , हजरत हजर
बिन अदिना की मजार शरीफ तोड़कर उनके पार्थिव देह को वो अपने साथ ले गए ... हजरत हजर
बिन अदिना मोहम्मद पैगंबर के जमाई थे ओर अली के प्यारे |”
“आतंकी के बंदूक से छूटनेवाली
गोली कभी ये नहीं देखती है की आप हिन्दू हो या मुसलमान ...उनका सिर्फ एक ही मकसद
होता है “मौत का खेल “ जो वो “जेहाद” के नाम तले खेल रहे है ....जिन आतंकियोने आज
मुहमद पैगंबर के प्यारे हजरत बिन अदी की मझार शरीफ तोड़ी है ...वो भला कल कोई ओर
मजार शरीफ नहीं तोड़ेंगे इसकी गेरंटी क्या ?
सिर्फ इंसान बनकर ही पढ़े
३ तारीख ये घटना विश्व के लिए चेतावनी ही समजो
मेरी दरगाह क्यू तोड़ी ?
“ तुमने
मांगा वो मैंने दिया फिर भी क्यू तोड़ दी मेरी दरगाह ? शायद
वो लोग मेरी ये बात भूल गए है की “ इन्सान बनो हैवान नहीं “ ,इन्सान ओर आतंकी मे यही फर्क है की इन्सान का धर्म
होता है ....ओर आतंकी का कोई धर्म नहीं होता है इन्सान भगवान ...मालिक,ओर वलियों मे मानता है मगर एक आतंकी सिर्फ खून खराबा ओर दहेशत मे ही मानता
है ...मत बनो आतंकी .....इन्सान बनकर जीओ फिर देखो ये दुनिया कितनी खूबसूरत है |”
* हजरत हजर बिन अदिना का
इतिहास कुछ इस प्रकार था
“ कंडी “ कबीला से थे हजरत हजर बिन अदी ,ये एक यमनी कबीला था
ओर फूफा की तरफ हिजरत की थी ,हजर ,हिजरी
सन 35 मे हजरत अली को मदद के लिए जुड़े थे ,हजर बिन अदी बचपन
मे ही अपने भाई " हानी बिन अदी" के साथ मुहम्मद पैगंबर साहब की सेवा मे जुड़ गए थे ,हजरत अली के खास दोस्तो मे उनका नाम आता था ओर उनकी नेकी के लिए वे बहुत
ही मशहूर थे इतना ही नहीं मगर वो एक दिन ओर रात मे 1000 हजर रकात नमाज पढ़ते थे ,छोटी उम्र मे ही वो पैगंबर साहब के चहिते विद्वान बन गए थे |”
“ इस्लामी
सेना के उच्च होदेदार बनकर उन्होने सीरिया के खिलाफ “जंग ए
सफेन “ नाम से युद्ध लड़ा था ओर हजरत अली को साथ देते हुवे
उन्होने “ जंग ए सफेन” , जमल ओर नहेरवान का जंग लड़ा था |”
“ हजरत
बिन अदी हिजरी सन 51 मे अपने बेटो एवं मुहमद पैगंबर साहब के कुछ साथियो के साथ
शहीद हो गए थे तब उनके पार्थिव शरीर को “दमास्कस के अदरा” विस्तार मे दफनाया गया था ,आतंकवादी दरगाह को नस्ट
करके उनके पार्थिव शरीर को सही सलामत वहाँ से ले गए है |”
* उठते हुवे सवाल
“ जो लोग अपने धर्म को नहीं
समज सकते है वो ही इस प्रकार का कृत्य कर सकते है ...शायद ये घटना “ बाबरी मस्जिद से भी बड़ी कही जाए ...क्यू की ये दरगाह थी हजरत मुहम्मद
पैगंबर साहब के जमाई की ...हजरत अली के प्यारे की .... क्या इस बात का विरोध नहीं
होना चाहिए ....और क्या अब ये वक़्त नहीं आया की हिन्दू,मुस्लिम
बनकर लड़ना छोड़कर सिर्फ इंसान बनकर ऐसे आतंकियो से लड़े जिसका मजहब सिर्फ “ दहेशत .... मौत “ ही है |”
....
jra ise bhi dekhen सऊदी अरब में मस्जिद तोड़ते हैं क्योंकि वो कहते हैं की मस्जिद कोई धार्मिक स्थान नहीं है। यह बस एक नमाज पढने की जगह है http://www.bharatyogi.net/2013/04/blog-post.html
ReplyDeleteसही कहा भारत योगी जी .....
Deleteदरोदीवार के झगड़े, बीती हुई बात है |अब हम नयी सोच के साथ जी कर दरों दीवार तोड़े बिना उन में अपनी इवादत कर सकते हैं | दूसरों की पूजा पद्धति में शामिल होकर अपने इष्ट देव का ध्यान कर सकते हैं | बड़ी अच्छी प्रस्तुति है |
ReplyDeleteसही कहा देवदत जी ,मगर ऐसे हादसो से यही सीख इंसान को लेनी चाहिए की आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता है खासकर उन इन्सानो को सबक लेना चाहिए जो आतंकवाद से प्रेरित है
Deleteअफसेसजनक...!
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी ,आपने सही कहा है की ये घटना अफसोस जनक है मगर ऐसे हादसो से यही सीख इंसान को लेनी चाहिए की आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता है खासकर उन इन्सानो को सबक लेना चाहिए जो आतंकवाद से प्रेरित है
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