" मन्दिर, मस्जिद हमने बहुत देखे ..तुजे ढूँढने की कोशिश हमने बहुत की जा जा कर मन्दिर मस्जिद देखा कही पर भी तू न मिला सिर्फ़ अलग अलग लोग मिलते थे ...मूरत तो थी ....मजार भी थी मगर तू नही था ....थी तो सिर्फ़ मन्दिर मस्जिद की चार दीवारे और अपने आप को तेरा भक्त कहनेवाले कुछ लोग "
" हे भगवान ,तेरे नाम पर आज कल मन्दिर मस्जिद वाले भी माँगने लगे है ,कभी चंदे के नाम तो कभी तेरे दर्शन करवाने के नाम पर ...तेरे करीब रहनेवाले ये लोगो को सद्बुद्धि देना भगवन नही तो तुज पर से लोगो का भरोसा उठ जाएगा क्या तेरे खजाने में खोट पड़ गई के तुजको भी चंदे की जरूरत पड़ने लगी कभी निच्चे झांककर देखना ये गरीब लोग.... तेरे चाहनेवाले किस कदर तेरे ....तेरे पास आकर लुटे जाते है फ़िर भी तुजे लगे के ये ठीक हो रहा है .....तेरे पुजारी ..लोगो को लुट ते है वो ठीक है तो तो .....हमे लुटाने में कोई हर्ज नही ....अगर ये ग़लत है तो फ़िर तू चुपचाप बैठा है क्यों ?"
" क्या मन्दिर ,मस्जिद की चार दिवारी में नही है तू ? क्या हम गरीब तेरे चाहनेवाले बिना पैसे तेरे दर्शन नही कर सकते ?सायद तेरे खजाने में कुछ कमी है वरना तू गरीब को कभी तरसता नही "
" कहाँ है तू ? सुना था की तू करुना का सागर है , तू दयावान है ,भक्तों का तारणहार है और अगर है भी तो फ़िर कहा है तू ? कभी धरती पर आकर देखना fursat में तेरे नाम पर ये लोग क्या क्या khel खेलते है ? "
आपने काफी अच्छा लिखा ..........बधाई देते हुए इतना ही कहूँगा ...............
ReplyDeleteकि भगवान् का आजकल इतना व्यवसायीकरण हो चुका है कि लोग भगवान् को भूल गए है सिर्फ पैसा ही सब कुछ समझते है इसलिए आज कि दुनिया मैं अगर भगवान् है तो सिर्फ "पैसा" और कुछ नहीं..............