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Saturday, June 20, 2009

क्या ये सही है ?

" जैसे जैसे दिन गुजरते है वैसे मानो हम बदलते जा रहे है |क्या हुवा है इश्वर की खुबसूरत देन को ?....शायद इन्सान इन्सानियत को भूलता जा रहा है| "

" सुबह सुबह आनेवाला या शाम को आनेवाला अख़बार देखते ही.. दिल मानों गम की परछाई में डूब जाता है |हर पन्ने पर इन्सानियत की मौत होती है |कुछ दिन पेहले का अखबार कुछ और कहता था जिसमे छ्पा था "सूरत में बजे टूशन जानेवाली लड़की का गैंग रेप | "सुबह सुबह टूशन जानेवाली लड़की अपने सहद्यायी के पास खड़ी कुछ किताबे ले रही थी की एक गाड़ी आई और उनके पास खड़ी रही |गाड़ी में से एक लड़का उतरा और अपने आप को पुलिशवाला बताने लगा |लड़की डर गई थी ....वो बदमाश ने उन दोनों को गाड़ी में बैठने को कहा और धमकाने लगे ...धमकी की असर उन दोनों पर हुई ...वो दोनों गाड़ी में बैठ गए |गाड़ी में और दो लोग थे और फिर आहिस्ता आहिस्ता उन बदमासों ने अपना असली रंग बताना चालू किया ......उनकी हैवानियत देखो की उन्होंने गाड़ी में रेप किया और और मोबाइल के जरिये वारदात का विडियो शूटिंग किया .....और वापस वही जगह धमकी के साथ छोड़ दिया जहांसे लड़की को उठाया था |रेप करनेवाले हैवान पकड़े गए है और ये तीनो पुलिशवाले के बेटे है साथ में पुलिश को मिला है वो फ़ोन जिससे दरिन्दोने विडियो क्लिप ली थी |पुलिशवालो को मिला है एक पुख्ता सबूत याने वो क्लिप |"

" दो दिन बाद बारी आई राजकोट की ,..............

राजकोट में दो केस हुवे जिसे अखबारवाले सूरत से भी भयानक बता रहे है " ये दोनों केस गैंग रेप के ही है |"क्या सोच में पड़ गए ? शायद ये चिंतावाली बात है |"

" जिसके बारे में फिर कभी चर्चा करेंगे.... राजकोट ,हिमाचल प्रदेश को अभी बाकी रखो और सोचो " क्या ये सही हो रहा है ? कहाँ जा रहे है हम इन्सान ? ये संस्कार कहाँ से आते है ? कभी फुर्सत मिले तो सोचना |"

" बहुत कुछ बदल रहा है |कैसे रखेंगे मेह्फुस अपनी संस्कृति को ? क्या हम अपने बच्चो को ये सब माहोल देकर जायेंगे ?शायद हां |मगर क्या ये सही है ?"


नोट : आजकाल और सांज समाचार अखबार से ये घटनाये ली गई है |

5 comments:

  1. भाई जी आपने बहुत ही गंभीर मामले को उठाया है। जहां तक मुझे लगता है, ये काम करने वाले लोग मानसिक रुप से अपंग होते है, जिन्हे मानवता नाम के अर्थ से कुछ भी मतलब नही होता।सार्थक मुद्दा।

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  2. बात तो आप सही कह रहे हैं और इसमें कुछ लोग कहते हैं कि टीवी की कमी है या फिल्मों का असर हैं इस तरह के तर्क बेकार होते हैं। इसमें सिर्फ और सिर्फ गलत संस्कारों का असर है। आखिर इस तरह की हरकत में अक्सर उन लोगों के बच्चे क्यों पकड़े जाते हैं जो समाज में ताकतवर ओहदा रखते हैं। यहां पुलिसवालों के बच्चें हैं किसी और घटना में मंत्री के बच्चे रहते हैं। कारण हैं उन्हें इतनी खुली छूट और घर के संस्कारों के द्वारा उस ताकत का उन्हें एहसास दिलाना। औऱ फिर बच्चों की गलतियों को छुपाना इसकी कारण है। औऱ सज़ा से बचाना इसी वजह से ये लोग इस तरह की हरकत से भी गुरेज़ नहीं करते

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  3. जब समाज के रख्वाले ही लोगो की इज्जत उडाने लगे तो, हमारी रखवाली कौन करेगा,यह मुद्दा गम्भीर है।

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  4. गुजरात में अगर ये होने लगे तो बाकि देश का क्या हाल होगा ? गुजरात का उदाहरण दिया जाता रहा है कि यहाँ महिलाएं सबसे सुरक्षित हैं ?

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  5. बहुत ही सही बात उठाई है... भाई.
    संस्कारों से परे लोग ही ऐसा काम करते है.. और वो लोग इन हरकतों में ज्यादा पकडे जाते है जिनकी पहुच अच्छी हो, जिनके पिता ऊँचे ओदे पर हो, जिनके माँ-बाप ने गलत काम करके काला धन कमाया हो... जो ज्यादा भोगवादी संस्कृति के पालन करने वाले हो... जिन्हें समाज में इज्जत जाने का कोई दर न हो.... ऐसे लोगों को बीच चोराहे पर खडा करके पीटना चाहिए..

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