history of jan gan man and " vandemataram "
* बंकिम
चन्द्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 के दिन लिखा था वन्देमातरम
* अपने उपन्यास “ आनंदमठ “ मे
उन्होने बहुत जगह पर किया है “
वन्देमातरम” का
प्रयोग
* 1905 मे वन्देमातरम राष्ट्रीयगीत बन गया था ...मगर
ये रहा जन गण मन का सच
* अपने बहनोई को रबीन्द्र नाथ टागोर ने एक पत्र लिखा था (ये1919 के बाद की
घटना है,इसमें
उन्होंने लिखा है कि ये गीत
'जन
गण मन' अंग्रेजो
के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है
आगे क्या हुवा ओर कैसे हुवा ये खुद ही पढ़िये
ये वन्दे मातरम नाम का जो गान है जिसे हम राष्ट्रगीत के रूप
में जानते हैं उसे बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 7 नवम्बर1875 को
लिखा था, बंकिम
चन्द्र चटर्जी बहुत ही क्रन्तिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे ,देश के साथ-साथ पुरे
बंगाल में उस समय अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन चल रहा था
“ एक बार ऐसे ही विरोध आन्दोलन
में भाग लेते समय इन्हें बहुत चोट लगी और बहुत से...उनके दोस्तों की मृत्यु भी हो गयी ,इस एक घटना
ने उनके मन में ऐसा गहरा घाव किया कि उन्होंने आजीवन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का
संकल्प ले लिया उन्होंने..
बाद
में उन्होंने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था"आनंदमठ",जिसमे
उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बहुत कुछ लिखा, उन्होंने बताया कि अंग्रेज देश को कैसे लुट रहे हैं, ईस्ट इंडिया
कंपनी भारत से कितना पैसा ले के जा रही है, भारत के लोगों को वो कैसे मुर्ख बना रहे हैं, ये सब बातें
उन्होंने उस किताब में लिखी
, वो
उपन्यास उन्होंने जब लिखा तब अंग्रेजी सरकार ने उसे प्रतिबंधित कर दिया ,जिस प्रेस
में छपने के लिए वो गया वहां अंग्रेजों ने ताला लगवा दिया,तो बंकिम दा
ने उस उपन्यास को कई टुकड़ों में बांटा और अलग-अलग जगह उसे छपवाया औए फिर सब को जोड़ के प्रकाशित करवाया , अंग्रेजों ने
उन सभी प्रतियों को जलवा दिया फिर छपा और फिर जला दिया गया, ऐसे करते
करते सात वर्ष के बाद
1882 में
वो ठीक से छ्प के बाजार में आया और उसमे उन्होंने जो कुछ भी लिखा उसने पुरे देश
में एक लहर पैदा किया,
शुरू
में तो ये बंगला में लिखा गया था,
उसके
बाद ये हिंदी में अनुवादित हुआ और उसके बाद, मराठी,
गुजराती
और अन्य भारतीय भाषाओँ में ये छपी और वो भारत की ऐसी पुस्तक बन गया जिसे रखना हर
क्रन्तिकारी के लिए गौरव की बात हो गयी थी , इसी पुस्तक में उन्होंने जगह जगह वन्दे
मातरम का घोष किया है और ये उनकी भावना थी कि लोग भी ऐसा करेंगे,
* बंकिम बाबू की बेटी
ने कहा
“ बंकिम
बाबु की एक बेटी थी जो ये कहती थी कि आपने इसमें बहुत कठिन शब्द डाले है और ये
लोगों को पसंद नहीं आयेगी तो बंकिम बाबु कहते थे कि अभी तुमको शायद समझ में नहीं आ
रहा है लेकिन ये गान कुछ दिन में देश के हर जबान पर होगा, लोगों में
जज्बा पैदा करेगा और ये एक दिन इस देश का राष्ट्रगान बनेगा, ये गान देश
का राष्ट्रगान बना लेकिन ये देखने के लिए बंकिम बाबु जिन्दा नहीं थे लेकिन जो उनकी
सोच थी वो बिलकुल सही साबित हुई,
1905 में ये वन्दे मातरम इस देश का राष्ट्रगान बन गया | “
* धर्म के नाम पर बटवारा
“ 1905
में
क्या हुआ था कि अंग्रेजों की सरकार ने बंगाल का बटवारा कर दिया था ,अंग्रेजों का
एक अधिकारी था कर्जन जिसने बंगाल को दो हिस्सों में बाट दिया था, एक पूर्वी
बंगाल और एक पश्चिमी बंगाल
, इस
बटवारे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये था कि ये धर्म के नाम पर हुआ था, पूर्वी बंगाल
मुसलमानों के लिए था और पश्चिमी बंगाल हिन्दुओं के लिए, इसी को हमारे
देश में बंग-भंग
के नाम से जाना जाता है
, ये
देश में धर्म के नाम पर पहला बटवारा था उसके पहले कभी भी इस देश में ऐसा नहीं हुआ
था, मुसलमान
शासकों के समय भी ऐसा नहीं हुआ था
| “
* 1905 बाद हर सभा मे
वन्देमातरम गूंज रहा था
“ खैर...............इस
बंगाल बटवारे का पुरे देश में जम के विरोध हुआ था , उस समय देश के तीन बड़े क्रांतिकारियों लोकमान्य
बाल गंगाधर तिलक,लाला
लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पल ने इसका जम के विरोध किया और इस
विरोध के लिए उन्होंने वन्दे मातरम को आधार बनाया और 1905 से हर सभा में, हर कार्यक्रम
में ये वन्देमातरम गाया जाने लगा ,कार्यक्रम
के शुरू में भी और अंत में भी ,
धीरे
धीरे ये इतना प्रचलित हुआ कि अंग्रेज सरकार इस वन्दे मातरम से चिढने लगी ,अंग्रेज
जहाँ इस गीत को सुनते,
बंद
करा देते थे और और गाने वालों को जेल में डाल देते थे, इससे भारत के
क्रांतिकारियों को और ज्यादा जोश आता था और वो इसे और जोश से गाते थे ,
* वन्देमातरम कहेकर पहेना
फांसी का फंदा
“ एक क्रन्तिकारी थे इस देश में
जिनका नाम था खुदीराम बोस,
ये
पहले क्रन्तिकारी थे जिन्हें सबसे कम उम्र में फाँसी की सजा दी गयी थी , मात्र 14 साल की उम्र
में उसे फाँसी के फंदे पर लटकाया गया था और हुआ ये कि जब खुदीराम बोस को फाँसी के
फंदे पर लटकाया जा रहा था तो उन्होंने फाँसी के फंदे को अपने गले में वन्दे मातरम
कहते हुए पहना था | इस
एक घटना ने इस गीत को और लोकप्रिय कर दिया था और इस घटना के बाद जितने भी
क्रन्तिकारी हुए उन सब ने जहाँ मौका मिला वहीं ये घोष करना शुरू किया चाहे वो भगत
सिंह हों, राजगुरु
हों,अशफाकुल्लाह
हों, चंद्रशेखर
हों सब के जबान पर मंत्र हुआ करता था ,
ये
वन्दे मातरम इतना आगे बढ़ा कि आज इसे देश का बच्चा बच्चा जानता है |
जन-गण-मन
की कहानी
* जॉर्ज पंचम का भारत मे आगमन
“ सन1911 तक भारत की
राजधानी बंगाल हुआ करता था
, सन 1905 में जब बंगाल
विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो
अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए
और 1911 में
दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया ,पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो
ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये ,इंग्लैंड का
राजा जोर्ज पंचम
1911 में
भारत में आया
“
* टागोर के परिवार का पैसा “ ईस्ट इंडिया कंपनी” मे लगा हुवा था
“
रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में
लिखना ही होगा
, उस समय टैगोर
का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया
करते थे, उनके
बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन
के निदेशक(Director)
रहे, उनके परिवार
का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत
सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन
अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता"
...
इस गीत के सारे के सारे शब्दों में
अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही
अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था “
इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है
"भारत के
नागरिक,भारत
की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है ... हे
अधिनायक(Superhero) तुम्ही
भारत के भाग्य विधाता हो
| तुम्हारी
जय हो ! जय
हो! जय
हो ! तुम्हारे
भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब,
सिंध, गुजरात,मराठा मतलब
महारास्त्र,द्रविड़
मतलब दक्षिण भारत, उत्कल
मतलब उड़ीसा, बंगाल
आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है, तुम्हारा नाम
लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है , तुम्हारी ही
हम गाथा गाते है | हे
भारत के भाग्य विधाता(सुपर
हीरो ) तुम्हारी
जय हो जय हो जय हो |
"
* 1911 मे जॉर्ज पंचम भारत आए
“ जोर्ज
पंचम भारत आया 1911 में
और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया ,जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में
अनुवाद करवाया
, क्योंकि जब
भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत
क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है ,जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और
इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की ,वह बहुत खुश
हुआ ओर उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके(जोर्ज पंचम
के) लिए
लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये , रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए .. जोर्ज पंचम
उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था | “
* नोबल एवार्ड की बात इस तरहा
थी
“ उसने
रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया टैगोर ने
कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना
लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये
क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है ,जोर्ज
पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल
पुरस्कार दिया गया
|
* एक हत्याकांड ओर गांधी का
खत
“ रविन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों के प्रति ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलियावाला कांड हुआ और गाँधी जी ने उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधीजी
स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और कहा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति
में डूबे हुए हो ? तब
जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली|
इस
काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया|
रबीन्द्रनाथ टागोर ने लिखा खत
ओर किया इकरार
“ सन1919 से पहले
जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके
लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे | रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई,सुरेन्द्र
नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और
ICS ऑफिसर
थे| अपने
बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के
बाद की घटना है)
| इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के
द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है ,इसके
शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है ,इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है ,लेकिन अंत
में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ
आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे | 7 अगस्त 1941 को
रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र
सार्वजनिक किया,और
सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये|
* नहेरु परिवार की राजनीति ओर
गरम दल
“1941 तक कांग्रेस
पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी
लेकिन
वह दो खेमो में बट गई
जिसमे एक खेमे में बाल गंगाधर
तिलक के समर्थक थे और दुसरे खेमे में मोतीलाल नेहरु के समर्थक थे मतभेद था
सरकार बनाने को लेकर मोती लाल नेहरु वाला गुट चाहता था कि स्वतंत्र भारत की क्या
जरूरत है, अंग्रेज
तो कोई ख़राब काम कर नहीं रहे है,
अगर
बहुत जरूरी हुआ तो यहाँ के कुछ लोगों को साथ लेकर अंग्रेज साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने ,जबकि
बालगंगाधर तिलक गुट वाले कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के
लोगों को धोखा देना है
,इस
मतभेद के कारण कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए ,
एक
नरम दल और दूसरा गरम दल
...
“ गरम
दल के नेता हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे (यहाँ
मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे
चुके थे, वो
किसी तरफ नहीं थे, लेकिन
गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधीजी देश के लोगों के आदरणीय थे) | लेकिन नरम दल
वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे, उनके साथ रहना,उनको
सुनना, उनकी
बैठकों में शामिल होना,
हर
समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे “
* शुरू हो गई राजनीती
“ वन्देमातरम
से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी
| नरम
दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए
1911 में
लिखा गया गीत"जन
गण मन"गाया
करते थे और गरम दल वाले"वन्दे
मातरम" | नरम
दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों
के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम
नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती(मूर्ति पूजा)
है | उस समय
मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे, उन्होंने भी
इसका विरोध करना शुरू कर दिया “
* एक संसद ने प्रस्ताव नहीं
माना वो थे जवाहरलाल नहेरु
“ जब
भारत सन1947 में
स्वतंत्र हो गया तो संविधान सभा की बहस चली ,
संविधान
सभा के 319 में
से318 सांसद
ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने
पर सहमति जताई,
बस
एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना| और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु,अब इस झगडे का
फैसला कौन करे, तो
वे पहुचे गाँधीजी के पास
,गाँधीजी
ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और
तुम (नेहरु ) वन्देमातरम
के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये, तो
महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी
विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा"
|
* आखिर बन गया अंग्रेज़ो का
प्यारा गीत हमारा राष्ट्रगान
“ लेकिन
नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए
|नेहरु
जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन-गण-मन
ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है
| उस
समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और
उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन-गण-मन को
राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो
बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना
दिया गया लेकिन कभी गाया नहीं गया
|नेहरु
जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे| जन-गण-मन को इसलिए
प्राथमिकता दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और
वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था | “
तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का | अब ये आप को
तय करना है कि आपको क्या गाना है
?
जय हिंद
राजीव दीक्षित
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