" मजहब ..क्या है मजहब का मतलब ? क्या आप जानते है मजहब का मतलब ,आज कल मजहब की बात करना फैशन हो गया है .मगर क्या वाकई में आप मजहब के बारे में जानते है ये भी तो एक गहेराई भरा प्रश्न है ,कभी अपने दिल से पुछो की आप जो भी बात मजहब के बारे में करते है वो बात सही है या गलत ..मै हिन्दू या इस्लाम धर्म की ही बात नहीं कर रहा हु ,मगर आज कल जिस तरह से इन्टरनेट पर या फिर गली के किसी नुक्कड़ पर रही पान की दुकान पर आप देख सकते है और सुन भी सकते है मजहब की चर्चा ,कभी आपने सोचा की क्या इन्टरनेट पर या नुक्कड़ पर मजहब की चर्चा करने वाले लोग वाकई में मजहब के बारे में जानते है या नहीं ? "
" एक चर्चा मजहब पर हो रही थी उसकी बात करता हु आपसे |
" एक जगह एक हिन्दू भाई और एक मुसलमान भाई अपने अपने मजहब की बात कर रहे थे ..मगर बात यहाँ तक पहुँच गयी की अब बात जगड़े की आ पहुंची थी मै ये सब देख रहा था आखिर मैंने उन दोनों को एक एक सवाल पुछा ... जो मजहब से जुड़ा हुवा था ..जानते है आप ..उस सवाल का जवाब देते वक़्त उनकी जबान लड़खड़ाने लगी थी क्यों की उन लोगों के पास नहीं था जवाब , |"
" वो सवाल कौनसे थे ? "
" मैंने हिन्दू भाई से सवाल पुछा था की .....
" क्या भागवत गीता के पहले कोई ग्रन्थ नहीं था और अगर था तो फिर हम भागवत गीता को ही अपना धर्म ग्रन्थ क्यों मानते है ? और कौन कौन से थे धर्म ग्रन्थ ? हम शिव पुराण को क्यों नहीं मानते है धर्म ग्रन्थ ?
" मुसलमान भाई से पुछा था ये सवाल ....
" क्या महमद पैगम्बर साहब के पहले कोई पयगम्बर नहीं हुवे थे ? और हुवे थे तो कितने और उनके नाम क्या थे ? "
" हिन्दू भाई भगवान शिव जी को मानते है ..मगर कितने लोगों ने शिव पुराण पढ़ा है ? और जिन लोगों ने पढ़ा होगा उनसे अगर पुछा जाये की शिव पुराण की बजे हमारा धर्म ग्रन्थ गीता क्यों ? ...जबकि शिव पुराण तो देवा धी देव महादेव जी का है ..शक्षत शिव जी का ग्रन्थ शिव पुराण फिर भी हिन्दू भाई यों का धर्म ग्रन्थ गीता है ..भाई ऐसा क्यों ? सोचो ..ये सोचने वाली बात है | "
" बिलकुल वैसा ही किसी मुसलमान भाई से उप्पर पुछा गया सवाल पुछा जाये तो उनके पास भी नहीं होगा जवाब .. न हिन्दू जानते है मजहब का मतलब ...न मुसलमान जानते है मजहब का मतलब ... बस मजहब के नाम पर एक दुसरे के सर फोड़ देते है |"
"ना राम ने कभी मना किया ..ना रहीम ने कभी मना किया | "
" मंदिर में रखी पत्थर की मूरत में बसे राम के पास अगर कोई मुसलमान भाई मांगता है कुछ तो उसे मिल जाता है ठीक उसी तरह दरगाह में चादर ओढ़े सोये ओलिया के पास जब कोई हिन्दू भाई मांगता है तो उसकी भी जोली भर जाती है ...न राम देखते है सामनेवाले का मजहब ..न रहीम देखते है सामनेवाले का मजहब ...मगर फिर भी हम इंसान देखते है एक दुसरे का मजहब ..न राम ने पुछा कभी की तू हिन्दू है या मुसलमान ..न रहीम ने पुछा की तू हिन्दू है या मुसलमान ? फिर भी हम एक दुसरे को पूछते है की आपका मजहब कौनसा है ?
सायद अब ..इंसान ..राम रहीम से भी बड़ा बन गया है |"
मेरी नजर से मजहब का मतलब ..बस यही है :
म : मन के अन्दर
ज : जन { इंसान } जन के अन्दर
ह : हर दिल में बसे
ब : बसनेवाले परम तत्व परमात्मा को पहेचानना
" और जो परम तत्व परमात्मा को पहेचान जाता है जान जाता है ..वो कभी " मजहब " नाम की व्यर्थ चर्चा में पड़ता नहीं है क्यों की मजहब कभी आपस में बैर करना सिखाता नहीं है ..पर हम लोग ही देते है मजहब को एक अलग सा रंग ..कौन सा है मजहब का रंग तो ..
जो इंसानियत का रंग है वही मजहब का रंग है |"
इकरार : सच कहू तो इन सवालों के जवाब तो मेरे पास भी नहीं है मगर एक कोशिश कर रहा हु उन लोगों तक ये बात पहुँचाने की जो इन सवालों के जवाब जानते नहीं है और मजहब की बात करते है ..मानो कोई बड़े पंडित हो ..और मुझे इन सवालों के जवाब जानने भी नहीं है क्यों की मै इंसानियत को ही अपना मजहब मानता हु .. मांगने पर राम भी मेरी झोली भरते है तो ...रहीम भी मेरी झोली भरते है ..बस्स इंसानियत को चाहता हु |
आप भी खुद देख लीजिये मजहब के नाम पर हम लड़ते है और फायदा सियासी लोगों का ही होता है हमारे नसीब में तो सिर्फ और सिर्फ ..चन्द बूंद आंसू के ही आते है ...........
याद रहे : मै किसी का दिल दुखाना नहीं चाहता हु ..मग़र यही शायद सच है की इंसानियत ही सबसे बड़ा मजहब है ..मेरे इस आलेख से अगर किसी के दिल को ठेंस पहुंची हो तो मै माफ़ी चाहता हु मग़र मेरा मकसद किसी का दिल दुखाना नहीं था और मै " गीता "को चाहता हु उतना ही "शिवपुराण" को भी चाहता ..मै सिर्फ यही कहेना चाहता हु की ये मजहब के चक्कर में मत पडो ..इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं है | "