कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने एक दशक में रियल एस्टेट का विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया जबकि उनके पास इसका कोई अनुभव नहीं था. यह रहस्योद्घाटन किया है अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने.
अखबार के मुताबिक उन दस सालों में जब कांग्रेस की सरकार केन्द्र में रही, वाड्रा ने बहुत बड़े पैमाने पर ज़मीन खरीदी. उसका कहना है कि उनके पास हाई स्कूल तक की डिग्री भी नहीं थी और न ही प्रॉपर्टी बिज़नेस का कोई अनुभव. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कंपनी की रिपोर्ट, ज़मीन के कागजात और प्रॉपर्टी के एक्सपर्ट्स से बातचीत के बाद पता लगाया कि 2012 में वाड्रा ने 1.2 करोड़ डॉलर (लगभग 72 करोड़ रुपये) की ज़मीन बेची थी. अखबार ने गणना की है कि वाड्रा के पास अभी भी 4 करोड़ 20 लाख डॉलर (लगभग 253 करोड़ रुपये) की ज़मीन है.
अभी यह पता नहीं चल सका है कि वाड्रा की कंपनियों ने हाल में कोई प्रॉपर्टी बेची है या नहीं क्योंकि पिछले दो साल के रिकॉर्ड सरकारी वेब साइटों पर नहीं हैं. वाड्रा ने 1997 में राजीव गांधी और सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी से शादी की थी. उसी साल उन्होंने ज़मीन-जायदाद का धंधा शुरू किया था. उन्होंने मात्र सवा लाख रुपये में स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्रा.लि. कंपनी शुरू की थी. इसके बाद कई और कंपनियां शुरू की. देश में रियल एस्टेट की सबसे बड़ी कंपनी डीएलएफ के साथ भी इनकी सांठगांठ रही है.
2004 में जब कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया तो वाड्रा एक छोटा सा एक्सपोर्ट हाउस चला रहे थे. वह सस्ते कपड़े और ज्वेलरी बाहर भेजते थे. 2007 के उत्तरार्ध में रियल एस्टेट के बिज़नेस में उतरे. उन्होंने एक कंपनी खड़ी की जिसका नाम था स्काई लाइट हॉस्पिटेलिटी प्राइवेट लिमिटेड. उन्होंने महज 2,000 डॉलर से भी कम राशि में धंधा शुरू किया. यह बात रजिस्टार ऑफ कंपनीज ऑफ द मिनिस्ट्री ऑफ क़ॉर्पोरेट अफेयर्स से पता चली.
2008 में स्काई लाइट ने नई दिल्ली के पास गुड़गांव में साढ़े तीन एकड़ का एक अविकसित प्लॉट खरीदा था. दो महीने बाद वाड्रा ने सरकार से दरख्वास्त की कि वह उस कृषि ज़मीन को कमर्शियल यूज के लिए परिवर्तन करने का आदेश दें. सिर्फ 18 दिनों में इसकी अनुमति मिल गई. इसके बाद तो उस ज़मीन की कीमत काफी बढ़ गई.
उसके चार साल बाद रियल एस्टेट की प्रमुख कंपनी डीएलएफ ने वाड्रा की कंपनी में करोड़ो रुपये लगाए. कंपनी की बैलेंस शीट में इन्हें एडवांस यानी कर्ज दिखाया गया था. 2012 में डीएलएफ ने वाड्रा की गुड़गांव वाली प्रॉपर्टी खरीद ली. इसके लिए उसने 97 लाख डॉलर (लगभग 58 करोड़ 42 लाख रुपये) का भुगतान किया. यह कीमत उस ज़मीन की खरीद मूल्य की सात गुना ज्यादा थी.
हरियाणा सरकार के भूमि विभाग के एक अधिकारी अशोक खेमका ने इस मामले की जांच की और पाया कि 2008 में वाड्रा की कंपनी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उस प्लॉट को खरीद सके. इस मामले में उन्हें भ्रष्टाचार की बू आई और उन्होंने इस सौदे को रद्द करने का आदेश दिया.
हरियाणा के सीएम ने जो कांग्रेस के ही सदस्य हैं, खेमका के तबादले का आदेश दे दिया. उन्होंने इस मामले पर टिप्पणी करने से भी इनकार कर दिया. खेमका ने कई मामलों का भंडाफोड़ किया है. उन्होंने बताय़ा कि उनके 22 साल के करियर में उनका कई बार तबादला किया गया है.
सरकारी फाइलों के मुताबिक स्काई लाइट ह़ॉस्पिटैलिटी ने बताया कि उसने 2008 में ज़मीन के लिए सरकारी बैंक कॉर्पोरेशन बैंक से लोन लिया था. लेकिन उस बैंक के चेयरमैन ने टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार को बताया कि उनके रिकॉर्ड के मुताबिक ऐसा कोई ट्रांजैक्शन नहीं हुआ था.
पिछले साल खेमका ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि वाड्रा की कंपनी की 2008 में बिक्री बिल्कुल फर्जी थी. लेकिन सरकार की बनाई हुई एक कमिटी ने लिखा कि वाड्रा ने कोई भी गलत काम नहीं किया था. विपक्षी दलों ने इस पर काफी हो हल्ला मचाया.
वाड्रा की कंपनी ने नई दिल्ली और आस पास के इलाकों में ज़मीन के कई सौदे किए थे. 2008-09 में उस कंपनी ने डीएलएफ द्वारा बनाए जा रहे एक होटल में 53 लाख डॉलर लगाए और वह भी 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी पर. 2012 में उस होटल की कीमत 3 करोड़ 30 लाख डॉलर आंकी गई थी.
वाड्रा की एक और कंपनी स्काई लाइट रियल्टी ने गुड़गांव में एक पेंटहाउस खरीदा जिसका मूल्य 50 लाख डॉलर (30 करोड़ रुपये) बताया जाता है. यह पेंटहाउस डीएलएफ द्वारा बनाए गए अरावलीज में है. इसी कंपनी ने सरकारी फाइलों के जरिये बताया कि उसने 2009 और 2010 में डीएलएफ द्वारा बनाए गए एक लग्जरी कॉमप्लेक्स में सात अपार्टमेंट खरीदे थे. इसके लिए उसने 870,000 डॉलर चुकाए थे. लेकिन सच तो यह कि उनकी कीमत उस समय 60 लाख डॉलर थी. आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि ये ट्रांजैक्शन डीएलएफ द्वारा गांधी परिवार को फायदा पहुंचाने के लिए किए गए थे. राहुल गांधी ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
राजस्थान में वाड्रा ने ज़मीन की खरीद अपने एक दलाल नागर के जरिये की थी जो एक काली गाड़ी में आता था. राजस्थान में सरकार सोलर प्रोजेक्ट के लिए जगह तय करने वाली थी. लेकिन इसके पहले ही वहां ज़मीन की खरीद फरोख्त की जाने लगी. वाड्रा की कंपनी ने राजस्थान में 2009 से 10 तक 2,000 एकड़ ज़मीन खरीदी थी जिसके लिए उसने महज दस लाख डॉलर( छह करोड़ रुपये) दिए.
इसके बाद पहले केन्द्र सरकार और फिर राज्य सरकार ने सोलर एनर्जी की परियोजनाओं के लिए जगहों का खुलासा किया. तब तक वाड्रा वहां बड़े पैमाने पर सस्ती दरों में ज़मीन खरीद चुके थे. देखते ही देखते ही वहां ज़मीन के दाम दस गुना तक बढ़ गए.
अब राजस्थान में बीजेपी की सरकार आ चुकी है और वह वाड्रा के ज़मीन सौदों की जांच करा रही है.
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