इस बार अन्ना हजारे का अनशन विफल रहा, टीम अन्ना का कहना है की अन्ना हजारे की तबियत इसका कारण रही, विरोधी कह रहे हैं की अन्ना का सच जनता के सामने आ गया है लेकिन मै कहूँगा की ये हम सभी की उदासीनता है जो इस हार का
कारण बनी है और थोडा सा सरकार के कुटिल नेताओं की चलाकियां भी |
अन्ना हजारे ने अनशन तोड़ दिया और मुझे उनके अनशन के तोड़ने से कोई शिकायत नही है क्योंकि इस बार मै उनके अनशन मे साथ नहीं था अत: उनकी हार की नैतिक जिम्मेदारी थोड़ी सी मुझ पर भी है और अगर आपने पिछले ३ अनशनो मे अन्ना हजारे का साथ दिया था और इस बार आप ने साथ नहीं दिया तो ये आप की भी हार है और थोड़ी सी नैतिक जिम्मेदारी आप की भी बनती है |
जो लोग अन्ना हजारे का अपमान करते हुए अनाप शनाप बक रहे हैं उन्हें मै ये समझा दूं की आसमान की तरफ मुह कर के थूकने से थूक सूरज तक नहीं जाता खुद के मुह पर आ कर गिरता है, अन्ना हजारे का अपमान करने के पहले खुद देख लो की खुद की औकात क्या है, उस बूढ़े सनकी पागल सोच वाले इंसान के कारण ही आज सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ है अन्यथा हम सारे घोटाले चुप चुप सहते रहते और कुछ ना कहते तो उनकी कार्यशैली से जिसे नाराजगी हो वो उस शैली का अपमान करे या विरोध उनकी मर्जी पर उस इंसान का अपमान करने के पहले खुद के गिरेबान मे जरूर झांक लेना |
उस बूढ़े इंसान की नियत मे लोग शक कर रहे हैं, कुछ उन्हें स्वयम्भूः गाँधी कह कर अपमानित कर रहे हैं और कुछ जाने क्या क्या, अगर एक पल के लिए मान भी लिया जाये की अन्ना हजारे की नियत मे खोट है और वो गाँधी की जगह ही बैठना चाहते हैं तो मुझे उस बात से भी कोई आपत्ति नहीं है हर कोई सम्मान पाना चाहता है उन्होंने ही पाने की कोशिश कर ली तो क्या पाप कर दिया, आप उनके कामो को देखो उनकी उस मांग को देखो जो वो सरकार से कर रहे हैं, वो तो यही कह रहे हैं न की एक मजबूत कानून बनाओ जो भ्रष्टाचार से लड़ सके, उनकी कार्य शैली चाहे कुछ भी हो उनकी मांग तो जायज है न|
जो कांग्रेसी आज उनकी कार्यशैली का विरोध कर रहे हैं वो ही आज से ८० साल पहले गाँधी जी की कार्यशैली का समर्थन करते थे जबकि गाँधी भी कोई देव पुरुष नहीं थे, मै गाँधी का सम्मान करता हूँ उन्होंने बहुत किया है देश के लिए लेकिन मै इस बात से भी इंकार नहीं कर सकता की वो भगत सिंह की हत्या मे अंग्रेजो के समान ही गुनाहगार थे क्यूँ की उन्होंने भगत सिंह की फांसी रोकने की कोशिश नहीं करी और उसका कारण गाँधी जी का राजनैतिक एजेंडा ही रहा होगा क्यूँ की तब भगत सिंह की लोकप्रियता गाँधी जी के समान हो चुकी थी |
यहाँ मेरा ये बात लिखने का कारण महज इतना है की जो लोग अन्ना हजारे की नियत मे शक कर रहे हैं वो ये समझ लें की उनकी नियत चाहे कैसी भी हो उनकी मांग पूरी तरह देश हित मे है और उनके अनशन के असफल होने पर अगर आप उनका
अपमान कर रहे हैं तो आप उनका नहीं खुद का अपमान कर रहे हैं |
कुछ बाते और जो मै कहना चाहूँगा
१) इसमें कांग्रेस की भी बड़ी चाल थी की इस तरह से आखरी मे इस लोकपाल बिल को लाया जाये संसद मे की उस वक्त जनता अन्ना के साथ ना आये |
२) कांग्रेस का पिछला तजुर्बा भी रहा है की आम जनता एक दो बार तो अनशन को समर्थन दे देती है लेकिन जब यही बाते बार बार दोहरे जाती हैं तो जनता का विश्वास डगमगाता है जो की इन चतुर सुजानो को पहले से ही पता है, १०० साल का तजुर्बा है इन लोगो को |
३) भारतीय मीडिया मे भी जिस तरह से अन्ना हजारे के अनशन की असफलता को दिखाया गया है वो मीडिया की सच्चाई दिखा रही है की वो उसके साथ है जिसके साथ ताकत होती है, पहले जनता की ताकत अन्ना हजारे के साथ थी तो मीडिया उनके साथ थी आज खिलाफ हो गई है |
४) कुछ कार्टून इस तरह के भी है जिसमे अन्ना हजारे के अनशन की असफलता को क्रिकेट जैसे घटिया खेल की असफलता के बराबर रखते हुए दिखाया जा रहा है, उनसे कहूँगा की सोच को बड़ी करो कोई भी खेल देश से बड़ा नहीं है |
आखरी मे सिर्फ यही कहते हुए लेख का समापन करना चाहूँगा की ..अन्ना हजारे की नियत मे कोई कितना भी खोट दिखाए, मगर उनकी मांगो मे कोई पाप नहीं है और इल्जाम तो राम और कृष्ण पर भी लगाए जा चुके हैं और गांधी और नेहरु पर भी तो अगर इल्जाम अन्ना पर ही लग गया तो क्या हुआ |
अन्ना मैने आप का साथ नहीं दिया मै शर्मिन्दा हूँ
आगे साथ दूंगा शायद इसी लिए अभी भी जिन्दा हूँ