दोस्तों आओ जाने विस्तार से : " गांधीजी ३ बार नोमिनेट हुवे थे, " नोबेल पुरस्कार " के लिए १९३७ , १९३८ , १९३९ .ये थे वो वर्ष जिसमे गांधीजी भी थे दावेदार नोबेल पुरस्कार के मगर १९३७ और १९३८ में कुछ हुवा नही और १९३९ और १९४७ में उनका नाम "शोर्टलिस्ट" हुवा |१९३७ और १९३८ में उनका नाम क्यु निकला गया ,कैसे निकला गया ये पता नही |"
" आख़िरकार १९४८ के वर्ष में गांधीजी के नाम पर नोबेल पुरस्कार की मुहर लगी ..ये खबर मिलने के कुछ महीनो बाद ही गांधीजी की हत्या हो गई थी उनकी हत्या होते ही खड़ा हुवा एक ऐसा विवाद की "किसी को भी मरणोत्तर पुरस्कार नही दिया जाता ये नोबेल कमिटी का नियम है |"इस विवाद पर परदा डालते हुवे नोबेल पुरस्कार कमिटी के सलाहकार "श्री सेएयपे "ने कहा की " गाँधी के जीवन के अन्तिम ५ महीनो की जानकारी से हमे ,ये पता चलता है की गांधीजी ने सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत के लोगो के लिए ही काम किया है और जो भी संदेश उन्होंने दिए है वो सभी संदेश से ये प्रतीत होता है की गांधीजी की तुलना "धर्मस्थापक व्यक्ति" के साथ करनी चाहिए ..नही की " शान्ति दूत "के रूप से |"
"दोस्तों ,जब गांधीजी जिन्दा थे तब इन नोबेल पुरस्कार की कमिटी को ये पता नही चला और जब विवाद बढ़ गया तो अचानक गांधीजी शान्ति दूत मिटकर धर्मस्थापक व्यक्ति बन गए ? ये कहाँ का न्याय है ?"
"बात यहाँ से ख़त्म नही होती है , गाँधीजी के विरोधी याने " मुलेर " जिन्होंने कहा की " गाँधी सदा के लिए अपने मूल मंत्र " se दृढ नही थे कई बार उनकी अंग्रजों के खिलाफ की अहिन्सा की लडाई हिंसा में परिवर्तित हो जाती थी |और गांधीजी सिर्फ़ भारत के लोगो के लिए ही कार्यरत थे विश्व समुदाय के लिए नही |"
" क्या मुलेर का कहेना ठीक है ? क्या सच मुच गांधीजी ने विश्व समुदाय के लिए कुछ नही किया था ?...अब इस मुलेर को कौन समजाये की " बेटे सायद तुने गांधीजी को ठीक से जाना नही है ...|"
" बराक ओबामा , नेल्सन मंडेला जैसे महानुभाव हमारे गांधीजी को आदर्श मानकर उनके बताये रस्ते पर चलकर "नोबेल पुरस्कार" ले जाते है मगर ...हाय रे किस्मत हमारी ...हमारे " राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी "नोबेल पुरस्कार वालो की नजर में "नोबेल पुरस्कार" के लिए लायक नही थे|"
" मगर इन सब बातों से एक बात साबित होती है की " सायद नोबेल पुरस्कार झूठा है ...या फ़िर नोब्रेल पुरस्कार कमिटी झूठी है ...क्यु की हमारे "राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी "और उनके आदर्श कभी झूठे नही हो सकते |"
" यहाँ तक दोस्तों की १९४७ के नोबेल पुरस्कार के चेयरमेन श्री गुन्नार ने अपनी डायरी में लिखा है की " ये सच है की महात्मा गाँधी सब उम्मेद्वारो में से श्रेष्ठ है , महान है |"
" अरे ये नोबेल कमिटी क्या जाने की हमारे गाँधी के आगे धन्यवाद संदेश बहुत ही छोटा है ..क्यु की लोगो के दिल में से आज भी गाँधी के लिए " महात्मा " अल्फाज़ निकलता है ,और आप लोगो को पुरस्कार देते वक्त ये कहेना पड़ता है की फलाना व्यक्ति " नोबेल पुरस्कार "विजेता है ....तो बड़ा कौन हुवा ...आपका नोबेल पुरस्कार या लोगो के दिल ने दिया " महात्मा " ये सन्मान |"
----dhnyawad " sandesh "
भाई जी बहुत ही सार्थक मुद्दा उठाया है आपने। आपकी लेखनी बहुत प्रभावीत करती है। बहुत-बहुत बधाई। दिपावली की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteराष्ट्रपिता महात्मा गाँधी!!
ReplyDeleteराष्ट्रपिता= राष्ट्र के पिता। राष्ट्र बडा है या बापु? राष्ट्र का कोई पिता नहीं होता। राष्ट्र सबका पिता होता है।
गाधी के लिये नोबेल की कल्पना करना वैसा ही है जैसे प्रेमचंद को राजेन्द्र यादव पुरस्कार देना।
ReplyDeleteइसमें सोचने जैसी कोई बात ही कहाँ है.
ReplyDeleteविचार योग्य मुद्दा ! मगर एक गांधी पर ऐसे हजार नोबेल कुर्बान हों जाएँ !
ReplyDeleteachha hi hai ki gaandhiji ko nobel nahin mila varnaa aaj jo haal hai nobel ka us se unkaa sammaan nahin, apmaan hi hotaa,,,,,,
ReplyDeletegaandhi gandhi hain.......koi bhi puruskaar unse badaa nahin hai
Ab to Gandhi ke naam se puraskar hona chahiye..Nobel ke wo kaheen aage hain!
ReplyDelete" aap sabhi ka aabhar "
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
abhut hi acah likha he sahi he gandhi ji ke bare main aapne likha sapko jagrat kiya baht hi acha
ReplyDeletehappy dahnters
अच्छा हुआ गाँधी जी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला नहीं तो बराक ओबामा और गाँधी जी एक ही पृष्ठ पर होते और वह कितनी अजीब बात होती.....
ReplyDeleteदूसरी बात...नोबेल को गाँधी जी की ज़रुरत हैं गाँधी जी को नाबेल की नहीं......
नोबेल की हैसियत ही नहीं है की वो गाँधी जी को पुरस्कार दे....
नोबेल ( अर्थात जो घंटी न बजा सके}, ऐसे ही लोगों को आज के युग में पुरुष्कृत किया जाता है
ReplyDeleteगाँधी जी ने तो गुलाम भारत के सभी भारतियों के तन-मन में घंटियाँ बजाई थी, उन्हें जगाया था, अहिंसा और चरखे का महत्व कर के दिखाया और समझाया था.
और यदि नोबल कहें, तो अपने दुपले-पतले गाँधी में एटमी पोवार भले ही न रही हो, पर गज़ब का आत्मबल था, और उस बल के आगे अंग्रेजों की हुकूमत को भी झुकाना पड़ा था. अब ऐसे बलासल को नो बल (बलहीन) का खिताब दिया जाये, उचित नहीं लगता.
अपने गाँधी तो समस्त पुरुस्कारों से ऊपर हैं...............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अजी लीजिये !!
ReplyDeleteठोंक कर हम फैसला करते हैं कि भविष्य में गांधी पुरूस्कार के लिए बराक ओबामा को 30 बार नामांकित किये जाने के बाद भी पुरुस्कार नहीं दिया जाता है!!
प्राइमरी के मास्टर की दीपमालिका पर्व पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें!!!!
तुम स्नेह अपना दो न दो ,
मै दीप बन जलता रहूँगा !!
अंतिम किस्त-
कुतर्क का कोई स्थान नहीं है जी.....सिद्ध जो करना पड़ेगा?
सौ नोबल विजेताओं को एक में मिला दिया जाए, तो भी वे गांधी के बराबर नहीं हो सकते।
ReplyDeleteधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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puraskaron se bahut bade hain Mahatma Gandhiji
ReplyDeleteसही विश्लेषण है ।
ReplyDeleteतुलसी भाई जी यह तो अच्छा हुआ कि गाँधी जी की यह पुरस्कार नहीं मिला क्योंकि गाँधी जी की तौहीन होती होना यह चाहिए कि नोबेल जी को "गाँधी रत्न" नमक पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए. आपको बधाई इस बेहतरीन लेख के लिए. आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDelete" aap sabhi ka dil se sukriya "
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! गांधीजी की तुलना किसी से भी नहीं किया जा सकता ! आपका ये पोस्ट प्रशंग्सनीय है और बहुत ही प्रभावित किया है!
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
इस महान हस्ती के आगे नोबेल पुरस्कार कुछ भी मायने नहीं रखता ये सच है ....स्वप्निल जी ने सही कहा ...."गाधी के लिये नोबेल की कल्पना करना वैसा ही है जैसे प्रेमचंद को राजेन्द्र यादव पुरस्कार देना......"
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने । महात्मा गाँधी के चरित्र के सामने नोबेल पुरस्कार की औकात ही क्या है । दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।
ReplyDeleteada ji ke saath sabhi ne bahut sahi kaha .in sabhi jaankaari ke liye hum aabhari hai aapke isi ke saath happy dipawali
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteमुझे तो दोनों ही बड़े लगते है।
ReplyDeleteक्योंकि दोनों के ही चित्र सजाए जाते हैं।
सुन्दर पोस्ट है।
गोवर्धन-पूजा
और भइया-दूज की शुभकामनाएँ!
" bilkul sahi kaha aap sabhi ne aur aapka aabhari hu mai "
ReplyDelete" GANDHIJI KA KOI MOL NAHI kyu ki VO ANMOL HAI "
----- eksacchai { aawaz }
khair! gandhi ji itne upar ho chuke hain ........ ki unhen koi noble ki zaroorat nahin hai.......... inka koi mol hi nahi hai.........
ReplyDeletebahut achcha laga yeh padh kar,,,,,,,,,,;..........
अल्फ्रेड नोबेल और महात्मा गाँधी में एकबारगी तुलना की जाए तो भी अपने बापू बीस ही बैठेंगे!
ReplyDeleteनोबेल महोदय एक वैज्ञानिक थे सो हम उनकी क़दर करते हैं मगर बापू विचारक थे और हम(समकालीन विश्व) उनसे प्यार करते हैं! नोबेल पुरस्कार देकर बापू की प्रतिष्ठा को आघात पहुचना होगा! बल्कि सच तो ये है की बापू को किसी के नाम का पुरस्कार दिया जाए ऐसा कोई नाम विश्व में नहीं है (सोचिये बापू का आलोचक होने के बावजूद मेरे ऐसे विचार हैं तो उनका विचार क्या होगा जो उनके समर्थक हैं या तथष्ठ हैं)