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Wednesday, October 7, 2009

डॉक्टर गिफ्ट लेते क्यु है ? ....एक अनजाना सच ...



" डॉक्टर ने लिख कर दी हुई दवाई उसीके मेडिकल से क्यों मिलती है ?.....



" दवाई बनानेवाली एक मशहूर कंपनी ने कुछ ही साल पूर्व कहा था की उनकी कंपनी ने "२० करोड़ रुपये " खर्च किए अपनी दवाई के पब्लिसिटी के पीछे ....क्या आपने कभी कोई दवाई बनने वाली कंपनी का "एडवरटाइश " देखा आपने ..फ़िर चाहे वो " टी. वी पर " हो " या बड़े बड़े पोस्टर में "|"



" फ़िर ये खर्चा होता कहाँ था ? कैसे की जाती थी पब्लिसिटी ? क्या कभी आपने मेरे इन मामूली दिखने वाले प्रश्नों का कभी विचार किया था ...जो सवाल मैंने अपने लेख के सुरुवात में आपको पूछा है ....नही ना ?"



"डॉक्टर के पास ... कभी फ्रीज ,कभी एयर condition ..to कभी कुछ और ...ये सब गिफ्ट आते थे कहाँ से ....दोस्तों ....उन दवाई बनानेवाली कंपनी का यही तो था "एडवरटाइशमेंट "का खर्चा |"



" आज की व्यस्त प्रेक्टिस में हम जानते है की डॉक्टर के पास वक्त नही होता है ...की बाज़ार में आनेवाली दवाई की उपयुक्तता और उसके बारे में सही नालेज मेडिकल जर्नल में से निकाले ...ऐसे में क्या होता है ....तो एक घंटे में क्या या मेडिकल "रीप्रेजेंटीटी " को मिलना और उनसे " दवाई " का नालेज लेना ही मुमकिन होता है ,..क्या एक घंटे में या एम् .आर से मिलकर उनकी दवाई का नालेज मिल सकता है ?


" इस बात का सबूत ये रहा ......



" ओर्गेनैज़शन ऑफ़ फरमासुईटिकल प्रोड्यूसर ऑफ़ इंडिया " नामक संस्था ने बताया की अब वो डॉक्टर के विदेश प्रवाश स्पोंसर करना बंद कर देगी ..और उनको मिल रहे गिफ्ट भी बंद किए जायेंगे | " क्या ये काफ़ी नही है |"



"हमारी कमनसीबी ये है की " राईट टू इन्फोर्मेशन "ये कायदा में शामिल नही है " दवाई बनाती कंपनीया और डॉक्टर ".............|"



" और खुश नसीबी ये है की भारत में दवाई बनानेवाली कंपनीयों ने लिया बेहद खुबसूरत निर्णय की अब वो नही देंगी डॉक्टर को कोई गिफ्ट |"

"दोस्तों इस में डॉक्टर की कोई गलती नही है ....मगर उनको अपने पेशे को लालच की खाई में नही धकेलना चाहिए .......डॉक्टर के पास आनेवाला हर कोई पैसेवाला नही होता ......आज दुनिया के हर देश यही प्रॉब्लम से गुजर रहे है .....फ़िर चाहे अमेरिका क्यों हो, वही पर भी इस बात की लडाई जारी है ...... के डॉक्टर को गिफ्ट देना बंद किया जाए .......|"



----- आभारी है " गुजरात समाचार " के

18 comments:

  1. डॉक्टर और दवा कंपनियों का तो चोली दामन का रिश्ता है.
    डॉक्टरों की सारी कौन्फेरेंसेस इन्ही द्वारा स्पोंसर होती हैं. वहीँ पर उनके प्रोडक्ट्स का प्रदर्शन भी होता है. यहाँ तक तो सब ठीक है.
    हाँ, कुछ लालची और स्वार्थी तत्व हैं, जो पूरे प्रोफेशन को बदनाम करते हैं.
    ये प्रोफेशन अभी भी नोबल प्रोफेशन है.
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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  2. आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात की है । कई बार कुछ डॉक्टर तो फ्री सेम्पल भी अपने मरीज़ों को मुफ्त देते है । यद्यपि दवा की गुणवत्ता जाँची परखी होती है लेकिन दवा कम्पनियों को यही शॉर्टकट पसन्द है । इसमे कई बार नकली दवा के भी मार्केट मे आ जाने की सम्भावना होती है । डोक्टर और दवा विक्रेताओं के रिश्ते अब छुपे नही है फिरभी अधिकांश डोक्टर गलत प्रथाओ का विरोध करते है और व्यावसाइकता के विरोध मे मानवता के ही पक्ष मे खड़े होते है । जो ऐसा नही करते वे उन्ही के हम्पेशा डॉक्तरो द्वारा नकारे भी जाते है ।अब इस घोशणा से देखिये क्या असर पड-ता है । अब क्या डॉक्टर टी.वी मे विज्ञापन देखकर दवा प्रिस्क्राइब करेंगे ?

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  3. nice post ese hi likhte rahiye or sabhi ko jagate rahiye






    sjandaar rachan

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  4. bilkul sahi kaha hai aapne "aadarniy daral sir " kuch log hi badnaam karte hai .. हाँ, कुछ लालची और स्वार्थी तत्व हैं, जो पूरे प्रोफेशन को बदनाम करते हैं. "muje aapka yahi wakya behad pasand aaya ,,,aapka dhanywad "

    " SHARAD sir ,aapka sukriya mai kis muh se ada karooo ..aapke kahne se mai 100 percent sahemat hu ...dekhte hai kya hota hai ab ?

    " aapka dhanyawad .."

    ----- eksacchai { AAWAZ }

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  5. और खुश नसीबी ये है की भारत में दवाई बनानेवाली कंपनीयों ने लिया बेहद खुबसूरत निर्णय की अब वो नही देंगी डॉक्टर को कोई गिफ्ट |"

    बहुत ही अच्छी खबर दी आपने ....देखना ये है की अब कितना बदलाव आता है इससे .....!!

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  6. बहुत खुब, आपने जो मुद्दा उठाया है वह काबिले तारीफ है। आप ने ऐसे जगह हमारा ध्यान उत्कृष्ट किया जहाँ हम कभी ध्यान ही नहीं देते। हमारे यहाँ कहा जाता है कि डाक्टर भगवान के रुप होते है, शायद कई बार इसी का फायदा उठाते है डाक्टर। बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख रहा आपका। बहुत-बहुत बधाई व आभार।

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  7. Ye kadva sahee, lekin saty hai..itnaahee nahee,to test karane ke liye kahe jate hain, unke aapasme dhege jude hue hote hain...

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  8. बंधु सवाल तो सौ फीसदी सही है लेकिन कुछ बाते जो आप नही जानते वो मैं आपको बताना चाहता हूँ. सबसे पहली बात तो यह है की एक डॉक्टर एक एम आर को वमुश्किल 5 मिनिट ही देता है और कम से कम 5-10 एम आर लोगो से मिलता है डॉक्टर बहुत ही व्यस्त रहते है तो इन 5 मिनिटो मे अपनी प्रॉडक्ट रेंज किसी डॉक्टर की स्म्रति मे डालना जिसे एम आर की भाषा मे बोलते की डॉक्टर के पेन पर लाना बहुत ही मुश्किल होता है तब डॉक्टर को कोई आकर्षक गिफ्ट देकर डॉक्टर से यह अपेक्चा की जाती के की जब जब वो गिफ्ट देखेगा उसे प्रॉडक्ट का नाम याद आएगा और फिर वो उसके पेन पर आ जाएगा. एम आर का प्रोफेशन बहुत ही चेलेंगिंग होता है कयि बार बहुत ही अप्रिय परिस्तिथियो मे भी स्माइल करना होता है बहुत ही मेहनत लगती है इतनी सारी कंपनी है मार्केट मे कंप्टिशन बहुत है अगर सेल नही होती तो एम आर की नौकरी चली जाती है तो इन परिस्तिथियो मे गिफ्ट सचमुच एक सहारा है उनके लिए. रही बात नालेज की तो यह बात सही है की बहुत से एम आर को प्रॉडक्ट की सही नालेज नही होती है लेकिन यह भी सही है की कुछ एम आर ऐसे भी होते हैं जिनकी नालेज डॉक्टर से भी ज़्यादा होती है मैं जब एम आर था मैं बहुत से मेडिकल जर्नल पडता था मुझे प्रॉडक्ट नालेज बड़ाने की धुन सवार रहती थी और मैं चलेंगे के साथ किसी भी डॉक्टर से बहस भी कर लेता था आज भी जब मे इस प्रोफेशन मे नही हूँ अब भी मे मेडिसिन की बहुत सी बुक्स जर्नल्स पड़ता हूँ इंटरनेट पर सर्च करता हूँ फारमेकॉकिनेटिक्स फार्मेकोदयनामिक्स पड़ता हूँ तो भाई सब कुछ दोनो पर निर्भर करता है एक अच्छा डॉक्टर एक नालेज बाले एम आर को पसंद करता है बाकी सभी अच्छे गिफ्ट बाले एम आर को

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  9. कुछ भी निर्णय ले लेने से या कानून बना देने से भारत में या दुनिया में नहीं बदलने वाला है, कानून या निर्णय दिखने वाले एक छेड़ तो बंद कर सकते हैं पर पैसा कमाने, नौकरी बचाने के दीवाने सौ रास्ते तलाश लेते हैं.

    कभी भी किसी भी बुरे या अच्छाई का सम्बन्ध मानसिकता से होता है, आज भी कई ऐसे कर्तव्य परायण , ईमानदार लोग मिल जायेंगें, जिनके पास बड़ी-बड़ी कोठियों , नौकर चाकर की फौज, बड़ी बड़ी चार पहियों की गाड़ियों की प्रगति भले ही न दिखाई पड़े, पर उनके दिल में मानवता के लिए बहुत ही असीम जगह है.

    वस्तुतः मानसिता को बदलने की है, सही मानसिकता बराबर बनी रहे, इस पर कुप्रवृत्तियाँ प्रभावी न होने पाएं, इसे समझाने, पढाने की न कहीं उचित व्यवस्था है और न उचित संरक्षण.

    खैर जो भी हो , बात तो आपने सही उठाई है, बदतर होते हालत तो बदलने ही चाहिए, रास्ता कोई भी क्यों न हो....

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  10. bahut acchee khabar hai magar mujhe naho lagataa ki kaanoon is me kuch kar sakegaa ek baar jin ke muh ko khoon lag jaaye vo koi na koi raah nikaal hi legaa dhanyavaad

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  11. आपने मुद्दा बिल्कुल सही उठाया है, मैं डाक्टर होते हुये भी इस विषय पर पोस्ट लिख चुका हूँ...
    डा. टी.एस. दराल और रोहित ने सभी तथ्यों का विवेचन भली भाँति कर ही दिया है ।
    पर दोस्त एक बात है, एक एम.एल.ए. की तन्ख़्वाह कितनी होती होगी, और उसके ख़र्चे ?
    आपसे इस विषय पर भी एक पोस्ट की अपेक्षा है ।

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  12. " dr.amar kumar ji se wada raha ki hum bahut hi jald aapke samne
    " एक एम.एल.ए. की तन्ख़्वाह कितनी होती होगी, और उसके ख़र्चे ? "
    is vishay per post leker hazir honge "

    aap sabhi ka aabhari hu ."

    ----- eksacchai { AAWAZ }

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  13. तुलसी भाई जी हर क्षेत्र का यही हाल है।
    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।

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  14. दुख की बात तो यह है कि "शिक्षा" और "चिकित्सा" अब सेवा के बदले व्यवसाय बन गए हैं। मानवीयता खत्म होते जा रही है दिनों दिन।

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  15. उचित बात है.
    धन्यवाद आपका!

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  16. आपने एक बेहद गंभीर मुद्दे पर नजर डाली है. जिसे जानते सब हैं किन्तु कर कोई कुछ पाता नहीं. अगर वाकई दवाई कम्पनियाँ यह रास्ता बन्द कर रही हैं और इसे किन्हीं अन्य विकल्पों के माध्यम से डॉक्टर तक नहीं पहुँचा रही हैं तो भविष्य में दवाईयों के बाजार भाव बहुत कम और एक गरीब आदमी की बस में हो जायेंगे. ऐसे में यह एक सुखद समाचार है किन्तु मुझे अब भी संशय है कि ऐसा होगा. शायद इसके बदले वो कोई मार्ग चुनें -अपना प्रोडक्ट तो डॉक्टर को याद करवाना ही है.

    सार्थक आलेख.

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  17. aapne ek bahut hi gambhir mudda uthaya hai.......... jo ki saamaajik hai.......... doctor aur cpmapany se gift ka to choli daaman ka saath raha hai............ itne bade bade nursing homes unhi company ke dwara finance kiye hote hain............

    doctores ka sab kuch pehle se hi commissioned hota hai...........


    ab kya karen.......... inko sudharna to kaanoon ke hi bas ki baat hai..........


    bahut hi saarthak lekh...........


    dhanyawaad.......

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