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Tuesday, November 16, 2010

ये मजहब का धुवाँ उठा कहाँ से - एक रचना

दोस्तों ,

           " ये रचना मैंने उन दिनों लिखी थी जब अयोध्या विवाद खड़ा था कोर्ट में ...आज इसे आपके सामने रख रहा हु ...गलतियाँ भी होगी इस रचना में मग़र अगर आपको पसंद आये तो इसे मै अपनी खुश किस्मती सम्जुन्गा क्यों की इस रचना को आप पढ़ना जरूर मग़र इस रचना के पीछे छिपी मेरी भावना को भी देखना ..इस रचना को मेरे दोस्त ने " कॉपी राईट " भी करवाई है ..अगर कोई गलती या कमी हो इस रचना में तो मुझे जरूर बताना ."

आपका अपना ,
तुलसिभाई ,

" ये मजहब का धुवाँ उठा कहाँ से ,

जिसने राम और रहीम को बदनाम किया ,

                     जगत के पालनहार ने कभी कुछ माँगा नहीं ,

                     हमने बिना मांगे ही उसे कोर्ट का कठहरा दिया ,

                     ये मजहब का धुवाँ उठा कहाँ से |

मंदिर में भी दीपक है ,

दरगाह में भी दीपक है ,

रंग दीपक की ज्योति का एक ही है ,

फिर ये मजहब का धुवाँ उठा कहाँ से |

                          है रहीम के दिल में राम ,

                         है राम के दिल में रहीम ,

                         फिर भी नहीं है इन्सानों के दिल में राम रहीम ,

                         ये मजहब का धुवाँ उठा कहाँ से | "
  

13 comments:

  1. बहुत शानदार पहल है आपकी..

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  2. " dhnyawad abyaz mere dost ..ied mubarak "

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  3. ये मजहब का धूआँ उस आग से उठा जो अपने स्वार्थ के लिये राम रहीम को लकडी बना, समझ कर जलाई गयी थी। किसी ने कुर्सी के लिये किसी ने देश के साथ गद्दारी के लिये किसी ने दुश्मनों के हाथों खेल कर और किसी ने धन के लिये। कविता मे सवाल सही उठाया गया है। राम रहीन एक हैं। केवल हम ही धर्म के नाम पर लड रहे हैं। बधाई इस कविता को पढवाने के लिये।

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  4. बहुत अच्छी सुंदर रचना जाती धर्म मजहबी भेदभाव से उपर उठकर इन्सान को इन्सान से जोड़ने वाली कविता!इस सन्दर्भ में एक SMS जो की अयोध्या के निर्णय आने के समय मोबइल पे आया था !
    राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा !
    मेरा जन्म कहा हुआ अब हाईकोर्ट बताएगा !!

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  5. Wah! Kya gazab kee rachana likhee hai aapne! Dil se nikle hue alfaaz jo asli mazhab kee disha darshate hain!

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  6. बहुत सुन्दर और महान भाव लिए बहुत अच्छी रचना प्रस्तुत की आपने ....धन्यवाद .

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  7. मंदिर में भी दीपक है ,
    दरगाह में भी दीपक है ,
    रंग दीपक की ज्योति का एक ही है ,
    दीपक की ज्योति तो एक रंग की ही है ... बस देखने वाली नज़रें मज़हब का चश्मा लगा कर dekhti हैं ...

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  8. बहुत सही कह रहे हैं आप । सबका मालिक एक है फिर हम क्यूं हैं बँटे बँटे ।

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  9. जिनकी मानसिकता अभी भी भारतीय नहीं है, वहां से उठता है..

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  10. बहुत बढ़िया और बिल्कुल सही लिखा है आपने! आख़िर हम सब को मिलजुलकर रहना चाहिए तभी एकता बनी रहेगी ! उम्दा पोस्ट!

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